Jain Station News
महत्वपूर्ण सूचना
जैन गुरुवाणी केन्द्र

बुढ़ापा बच्चों का पुनरागमन होता है, वृद्धों की दहनीय स्थिति चिंता का विषय – जिनेन्द्रमुनि मसा

बुढ़ापा बच्चों का पुनरागमन होता है, वृद्धों की दहनीय स्थिति चिंता का विषय – जिनेन्द्रमुनि मसा

गोगुन्दा । श्री वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावकसंघ महावीर जैन गौशाला स्थित स्थानक भवन में जिनेन्द्रमुनि मसा ने कहा कि जीवन में सैंकड़ो संघर्षों और उतार चढ़ाव में लंबा समय बिताने पर अनुभव की ख़री कसौटी का लाभ जिसे मिलता है वह अत्यंत भाग्यशाली है। मानो बिना परिश्रम के उसने अनमोल खजाना प्राप्त कर लिया हो।जो कि न स्कूल, कॉलेज और पाठयक्रमों से मिलता है, और न ही धन देकर पाया जा सकता है। यदि वह मिलता है तो सिर्फ परिपक्व अनुभवी विशिष्ट मानव के चरणों मे रहकर ही प्राप्त किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि ज्ञान का भंडार जिनके पास है वह इतना सीधा मिलता है कि उनकी सेवा और विनय से दिल जितने वाला निहाल हो जाता है। जैन मुनि ने कहा कि वृद्धावस्था में आने पर जो उन्हें भार के रूप में मानता अथवा अनदेखा कर उपेक्षित रवैया जो अपनाता है, उससे वृद्धों की जो भावना आहात होती है उससे उनके दिल में उठनेवाली पीड़ा और व्यथा से हमारे उन्नत जीवन में व्यवधान व उन्नत कर्मों का संचय होता है। उनकी आह बसंत की भांति फूलते जीवन को पतझड मे बदल देती है।जैसे श्रवणकुमार के वृद्ध माता-पिता कल्पित आत्मा से जो राजा ने दशरथ को दुःखद वचन कहें- राजा ने कहा जैसे हम बेटे के वियोग में तड़प रहे है वैसे ही राजा तू मी तड़प कर मरेगा। उन कर्मों के भार से राजा को विशाल वैभव, परिवार भी नहीं बचा सका। इसमे जेक या चेक कमी नहीं चलता। मुनिजी ने कहा कि सबसे बड़ा तीर्थ करना है तो वृद्ध के चरणों को साक्षात भगवान का स्वरूप मानकर उनकी सेवा में लीन हो जाओ। उससे हमारा कोई सम्बन्ध और रिश्ता न हो, उनकी सेवा और बलिहारी है, उसी में तप, जप, साधना का रहस्य छिपा हुआ है। यदि एक बार भक्ति पुजा को गौण कर सेवा का प्रसंग आने पर पहले वृद्ध का सहारा बन जाये तो और ज्यादा पुण्य का लाभ मिलता है। हमारे देशमें वृद्धाश्रम का निर्माण ही सभी धर्मों के लिए महान कलंक है। मुनि कमलेशने कहा कि भारत जैसे आध्यात्मिक देश में वृद्धों की दहनीय स्थिति महान चिंता का विषय है, मानो धर्म की शिक्षाएं, पुस्तकों की शोभा और धर्म स्थल में श्रवण तक रह गया है। लगता है जीते जी माता-पिता को पानी नहीं पिलायेगा और मरने के बाद उसकी प्रशंसा करेंगे। कई हम मृत संस्कृति के उपासक तो नहीं बन रहें। उनकी विविध खबर न लेना मरने पर आंसु बहाना मात्र पाखण्ड है। ऐसी दुरात्मा की भक्ति भी स्वीकार नहीं करेगा। भगवान और दुनिया में कोई शक्ति उसे नरक में जाने से रोक नहीं सकती। अतः आप सभी को वृद्धजनों का सम्मान करना सीखना चाहिए।

जैन संतने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति के कारण अपने माता-पिता के सामने शराब, बीड़ी, सीगरेट, तम्बाकू का सेवन करते है। उनको सम्मान देने के बजाय उनको जलील करते है। अतः यह युवा पीढ़ी के लिए शर्म की बात है। विदेशी हवा ने देश की संस्कृति में परिवर्तन लाया है। लेकिन संत समाज है यहां तक इस देश की संस्कृति का बाल भी बांका नहीं हो सकता। प्रवीण मुनि ने सेवा को परम् गहना कहा है। सेवा से जो दिल मे सुकून मिलता है।उसकी कोई कीमत नही है। रितेश मुनि ने अपनी संस्कृति को अपनाने पर जोर दिया। युवाओ को पश्चिमी संस्कृति की लत लगी हुई है। हमे देश की माटी से प्रेम करना चाहिए। प्रभातमुनि ने कहा युवा देश की धड़कन है। हमे धर्म के साथ विज्ञान को भी आत्मसात करना चाहिए।

Related posts

एक-दूसरे को समझना बंद कर देते है तो गायब हो जाती घर की खुशियां – समकितमुनिजी

विवेक रूपी दीपक के बुझ जाने पर तो वह प्राणशून्य कलेवर के समान है – जिनेन्द्रमुनि मसा

धर्म को संसारभर में सभी मंगलो में सर्वोत्कृष्ट मंगल कहा है – जिनेन्द्रमुनि मसा

Leave a Comment