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मुकुट सप्तमी/मोक्ष सप्तमी पर्व कथा

मुकुट सप्तमी/मोक्ष सप्तमी पर्व कथा

जम्बूद्वीप के कुरुजांगल देश में हस्तिनापुर नगर है। वहाँ के राजा विजयसेन की रानी विजयावती से मुकुटशेखरी और विधिशेखरी नाम की दो कन्याएँ थीं। इन दोनों बहनों में परस्पर ऐसी प्रीति थी कि एक दूसरी के बिना क्षण भर भी नहीं रह सकती थीं। निदान राजा ने ये दोनों कन्याएँ अयोध्या के राजपुत्र त्रिलोकमणि को ब्याह दी।
        एक दिन बुद्धिसागर और सुबुद्धिसागर नाम के दो चारणऋषि आहार के निमित्त नगर में आये।  राजा ने उन्हें विधिपूर्वक पड़गाहकर आहार दिया और धर्मोपदेश श्रवण करने के अनंतर राजा ने पूछा-हे नाथ! मेरी इन दोनों पुत्रियों में परस्पर इतना विशेष प्रेम होने का कारण क्या है? तब श्री ऋषिराज बोले-इसी नगर में धनदत्त नामक एक सेठ था, उनके जिनवती नाम की एक कन्या थी और वहीं एक माली की वनमती कन्या भी थी, इन दोनों कन्याओं ने मुनि के द्वारा धर्मोपदेश सुनकर मुकुटसप्तमी व्रत ग्रहण किया था। एक समय ये दोनों कन्याएँ उद्यान में खेल रही थीं (मनोरंजन कर रही थीं) कि इन्हें सर्प ने काट लिया, दोनों कन्याएँ णमोकार मंत्र का आराधन करके देवी हुई और वहाँ से चयकर तुम्हारी पुत्री हुई हैं। तभी से इनका यह स्नेह भवांतर से चला आ रहा है। इस प्रकार भवांतर की कथा सुनकर दोनों कन्याओं ने प्रथम श्रावक के पंच अणुव्रत, तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत इस प्रकार बारह व्रत लिए और पुन: मुकुटसप्तमी व्रत धारण किया। प्रतिवर्ष श्रावण सुदी सप्तमी को ‘ॐ ह्रीं श्री वृषभतीर्थंकरेभ्यो नम:’ इस मंत्र का जाप्य करतीं तथा अष्टद्रव्य से श्री जिनालय में जाकर भाव सहित जिनेन्द्र देव की पूजा करती थीं। इस प्रकार यह व्रत उन्होंने सात वर्ष तक विधिपूर्वक किया पश्चात् विधिपूर्वक उद्यापन करके सात-सात उपकरण जिनालय में भेंट किये। इस प्रकार उन्होंने व्रत पूर्ण किया और अंत में समाधिमरण करके सोलहवें स्वर्ग में स्त्रीलिंग छेदकर इंद्र और प्रतीन्द्र हुई । वहाँ पर देवोचित सुख भोगे और धर्मध्यान में विशेष समय बिताया। पश्चात् वहाँ से चयकर ये दोनों इन्द्र-प्रतीन्द्र मनुष्य होकर कर्म काट कर मोक्ष प्राप्ति की।

इस प्रकार सेठ जी तथा माली की कन्याओं ने व्रत (मुकुटसप्तमी) पालकर स्वर्गों के अपूर्व सुख भोगे। अब वहाँ से चयकर मनुष्य हो मोक्ष प्राप्ति की। धन्य है! जो और भव्य जीव, भाव सहित यह व्रत धारण करें, तो वे भी इसी प्रकार सुखों को प्राप्त होवेंगे।

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